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Who Is Sarak?

    सराक यानी एक ऐसी धर्म-संस्कारी जाति जो श्री सम्मेद शिखरजी महातीर्थ के आसपास - बंगाल, बिहार, ओडिसा, झारखंड राज्य में बसी है।

वर्षो पूर्व, उन क्षेत्रों में हमारे पूर्वजों का, जैनों का निवास था। बहुत से प्राचीन जैन मंदिर थे, बड़ी-बड़ी जैन नगरियां थी। तीर्थंकर परमात्माओं का परिभ्रमण उन क्षेत्रों में होने के कारण बहुत बड़े पैमाने पर जैन वहां रहते थे। आज भी उन मंदिरों के अवशेष पाए जाते है।

लेकिन समय के चलते, असामाजिक तत्वों के आक्रमणों से अनेक मंदिर नष्ट हो गए। और प्राकृतिक आपदा भी इस प्रकार हुई की अहिंसा का पालन करना दुष्कर हो गया। जब अनाज आदि की कमी के कारण जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो गया, तब वहां से पलायन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।

लेकिन कुछ परिवार वहीं रहे और वहां रहकर भी अपने आचारों को कायम रखा। समय के प्रवाह के साथ, उनकी जो मूल पहचान थी, वह खो सी गई। वही लोग आगे चलकर श्रावक से सराक कहलाए जाने लगे, जिनके आचार मूल रूप से जैन धर्म के ही है।

ऐसी सराक जाति की कई बाते प्राचीन ग्रंथो में भी मिलती है। उनके बारे में अद्भुत बात तो यह है की उनके गोत्र आदिदेव, अनंतदेव, शांतिदेव, धर्मदेव, गौतम, आदि है, जो कि जैन धर्म के तीर्थंकर एवं गणधर भगवंत के नाम से है।

तो एक अर्थ में ऐसा कह सकते है की यह प्रभु के ही वंशज है। कई वर्षों पूर्व, सराक लोग धर्म से बिछड़ गए, परंतु उनकी जीवनचर्या वैसी ही रही, और आज भी उसकी झलक उनके जीवन में देखने को मिलती है।

History Of Sarak Utkarsh Abhiyan

    लगभग ८० साल पहले, संवत १९९० में न्याय विषारद पूज्य मंगलविजयजी महाराजा और पूज्य प्रभाकरविजयजी महाराजा ने इस क्षेत्र में विचरण किया था। आगे चलकर उन्हें अथाह परिश्रम के बाद सराक जाति का परिचय हुआ।

शुरुआत के समय में ज्ञान के अभाव से सराक लोगों ने महात्मा का तिरस्कार तक किया, पर गुरु भगवंत ने ऐसी परिस्थिति में भी उन लोगो को धर्म का परिचय करवाया और उनमें धर्मबीज बोया।

आगे चलकर पूज्य मोहनलालजी महाराजा के अनेक महात्माओं ने भी इस क्षेत्र में सुंदर कार्य किया। सन् २००० में जब कलिकुंड तीर्थोर्द्धारक परम पूज्य आचार्य श्री राजेंन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा छः माह का छ'रि पालित श्री संघ लेकर श्री सम्मेत शिखरजी महातीर्थ पधारे, तब कुछ सराक जाति के बारे में उनको ज्ञात हुआ। फिर गुरु भगवंत ने उनके बारे में और जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रयास शुरू किए।

सन २००९ में जब फिर से ६ माह का छ'रि पालित संघ लेकर श्री सम्मेद शिखरजी महातीर्थ पधारे, तब गुरुदेव के आदेशानुसार उनके शिष्य, पन्यास राजपद्मविजयजी महाराजा (वर्तमान में आचार्य श्री राजपरम सुरीश्वरजी महाराजा) ने सराक क्षेत्र में विचरण किया।

और जानकारी प्राप्त होने पर पूज्य गुरुदेव ने उस समय सकल श्री संघ एवं राज परिवार को जीवोद्धार करने का उपदेश दिया। उन्होंने सराक जाति के उद्धार कार्य में जुड़ने का आदेश फरमाया और श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ में मेरु तेरस के दिन गुरुदेव का कालधर्म हुआ।

गुरुदेव का अंतिम स्वप्न राज परिवार ने जीवनमंत्र बना दिया और तब से शासनरत्न श्री कुमारपाल भाई वि. शाह के मार्गदर्शन से शुरू हुआ सराक उत्कर्ष अभियान।

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Who Next?

    हमारे ही जैन समाज के धर्मप्रिय ऐसे सराक भाईयों का व्यवहारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक तीनों रूप से उद्धार हो और वह सब पुनः जल्द से जल्द धर्ममय पूर्ण जीवन को प्राप्त कर आत्म कल्याण के लिए आगे बढ़ सके ऐसा प्रयास।

हर गांव में एक जिनालय, जैन भवन एवं पाठशाला हो।

साथ ही, धर्म को गहराई से समझकर यही सराक जैन हमारे २० तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि ऐसे श्री शिखरजी महातीर्थ एवं निकटतम सभी कल्याणक भूमि की सेवा और रक्षा कर सके।

इस प्रकार, तीर्थ की महत्ता को जानकर, आसपास में रहे हुए और भी अनेक लोगों को इस महान तीर्थ से जोड़े, उनमें तीर्थयात्रा का भाव जगाएं जिससे तीर्थ पर आवागमन बढ़े, आशातना घटे और तीर्थ के ऊर्जा एवं प्रभाव में वृद्धि हो।

अथार्थ साधर्मिक भक्ति के साथ-साथ तीर्थ रक्षा के कर्तव्य को भी अच्छे से अदा कर सके इस तरह का एक्शन प्लान हमें बनाना है।