आज के इस भौतिक युग में संस्कारों की हानि होती जा रही है। व्यवहारिक पढ़ाई हेतु कई विद्यालय बन रहे हैं, उनकी संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। पर क्या सिर्फ व्यवहारिक ज्ञान से जीवन की सही अर्थ में उन्नति हाेगी? सुंदर व संस्कारी जीवन के लिए व्यवहारिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी अति आवश्यक है। और यह ज्ञान देने का कार्य मात्र गुरु भगवंत कर सकते है। लेकिन जहां और जिस समय गुरु भगवंत हाजिर ना हो, ऐसे समय में यह ज्ञान देने के लिए पाठशाला एक मात्र स्त्रोत हो सकते है। ...
एक जीव जब धर्म से जुड़ता है, तब अनेक जीवों को अभयदान प्राप्त होता है। एक नयसार जब समकित को स्पर्श करता है, तब श्रमण भगवान महावीर का जन्म होता है। एक जीव जब धर्म में अग्रसर होता है, तब अनेक जीवों के लिए मोक्ष मार्ग प्रशस्त कर देता है।
यह है धर्म प्राप्ति के परिणाम। इन्हीं को लक्ष्य में रखकर राज परिवार पिछले कुछ सालों से सराक क्षेत्र के गावों में ग्राम शिविर आयोजित करते है।...
मात्र भारत ही नहीं, पूरे विश्व में चारों फिरके के सभी जैन, चाहे बूढ़े हो, माताएं बहनें हो, पुरुष हो या बच्चे, साल भर में शायद अपनी व्यस्तता या अरुचि के कारण आराधना कम ज्यादा करते होंगे, लेकिन पर्युषण ऐसा सब पर्व है जो सबके हृदय में एक अलग ही प्रकार का उल्लास ला देता है। और उन दिनों में हर जैन पूरे भावोल्लास के साथ विशेष धर्म आराधना करते हैं।
राज परिवार का परम सौभाग्य है कि उन्हें ऐसे विरल आत्माओं के साथ पर्युषण करने में निमित बन पा रहे है। जिसमें हम पूरे देश से आए हुए शासन समर्पित भाई-बहनो के साथ वहां प्रवचन, सुबह-शाम का प्रतिक्रमण, स्वप्न दर्शन, जन्म वांचन, परमात्मा की रथ यात्रा, संध्या भक्ति आदि अनेक आराधनाएं करते एवं करवाते है।
सामान्यतः तीर्थ यात्रा में 5 दिन का प्रोग्राम रहता है जिसमे 4 दिन शिविर और अंतिम दिन तीर्थ यात्रा होती है। शिविर में जैनत्व के सिद्धांत एवं आराधना का ज्ञान देकर जैनत्व के रंग में रंगने का प्रयास होता हैं। प्रतिदिन प्रभु के दर्शन, पूजा से लेकर संध्या भक्ति व आरती में सबको जोड़ा जाता है।... आज तक कई (10,000 से ज्यादा) सराक बंधुओं को तीर्थ यात्रा करवाने का लाभ प्राप्त हुआ है। हम लाखों रुपए टूर, पिकनिक आदि में खर्च करते हैं जिससे पुण्य नहीं बल्कि पापों का पोटला बांधते हैं। तो चलो, अब कुछ ऐसा करें जिससे हमारे भी पुण्य बढ़े।
तीर्थ यात्रा करवाने से किसी जीव के सम्यग दर्शन में निमित बनने के फल स्वरूप अपनी मोक्ष यात्रा तय करने का यह अनूठा लाभ है।...
जैसे राष्ट्रध्वज हर एक नागरिक के मन में गौरव प्रकट करता है, उसी तरह जैन ध्वजा से जिनशासन का गौरव बढ़ता है...
अगर आपको अपने जीवन में कम से कम एक बार ध्वजा चढ़ानी हो तो राज परिवार आपके लिए एक अनूठा आयोजन लाया है। शिखरजी के आसपास आए हुए सराक क्षेत्र के जिनालयों की वर्षगांठ, सराक भाइयों के साथ।
जीवन में दो व्यक्ति के उपकार कभी भी नहीं भूले जा सकते हैं :
1. मां-बाप - जिन्होंने हमें जन्म दिया, चलना, खाना-पीना और बोलना सिखाया
2. गुरु - जिन्होंने हमें जीना सिखाया। यदि एक अपेक्षा से कहे तो माता-पिता हमारे एक भव के उपकारी हैं जबकि गुरु हमारे जन्मो जन्म के उपकारी हैं। भला उनके उपकारों को कोई कैसे भुल सकता है?...